Tuesday 16 October 2012

ये मै कहाँ आ गया...

पहले कच्चे घर मे,

पक्के दिल वाले मिलते थे
अब पक्के घर मे कच्चे दिल वाले मिलते हैं,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हँसते-मुस्कुराते चेहरे बेशक लगते हैं प्यारे,
पर मुस्कुराहट के पीछे अब
कोई मतलब जुड़ा है,यहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...
जिंदगी के राह पर चलते-चलते
मिल जाते हैं कई अनजाने लोग
कोई अपना तो कोई सपना सा लगता है 
पर अब देखता हूँ,कि
कोई भरोसा के लिए तो
कोई भरोसा करके रोता है,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
हर ज़ज्बात को जुबान नही मिलती है
हर आरजू को दुआ नही मिलती है
अब दुःख-दर्द को गुस्से का नाम दिया जाता है
अब तो,
पलकों पर बिठाया जाता है,नजरों से गिराने के लिए,यहाँ
ये मै कहाँ आ गया...
अब अच्छा नही लगता है ये जहाँ 
ये मै कहाँ आ गया...?

...दिनेश नयाल