Sunday 15 December 2013

जीवन का सच

कोई हमेशा दुखी नहीं रहता,
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जीवन असान है यहाँ कोई ना कोई ऐसा है
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जो आपका दिल तोड़ देता है
आप बहुत ज्यादा टूट, भी सकते हो
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और सिर्फ कोने में बैठ कर घंटो रो सकते हो...!
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' जिन्न ' पर तभी तुम्हें याद आता है.......!!!!!
,,,
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'' जिंदगी तब भी चल रही है....'' !! :)



16/12/2013
दिनेश नयाल
सर्वाधिक सुरक्षित

Tuesday 10 December 2013

कुछ ना कहा

क्या मैंने तुमसे कहा
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तुम मेरे लिए क्या हो
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क्या मैंने तुमसे कहा
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जो भी खुशियाँ
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तुम मेरे लिए लाई हो !!
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क्या मैंने तुमसे कहा
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कि तुम मेरे लिए दुनिया हो..!

' जिन्न ' बस इसलिए
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कि तुम नहीँ हो
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जहाँ तक मैंने जाना है
तुम सबसे बेहतर थी
जो मेरे साथ कभी नहीं हुई....
I Love you...




दिनेश नयाल < जिन्न >
सर्वाधिक सुरक्षित
11/12/2013

Saturday 7 December 2013

जीव कुछ ऐसा ( Catterpiller )

जीव कुछ ऐसा
 जीव सबने देखा,
अनोखा- अजीब
आकार प्रकार में भिन्न
देखा एक जीव
जीव कुछ ऐसा

 कवि मन प्रसन्न
उल्लास लिए मन
देखने को जागरूक
प्रसन्न मन उन्नमुख
रहस्यमय जीव कुछ ऐसा
विवाद लिए मन में

देखा सबने जाना सबने
पहुँचे लेकर
जीव विज्ञान प्रसाधन
जीव कुछ ऐसा


जाना सबने
जीव में छिपी
 तितली का रहस्य,
रहस्य कुछ अजीब
रहस्य कुछ अनसुना






जाना ना था
राज जिसका
आ गया सामने सबके
एक जीव ऐसा भी है
जिसमें कई चरण
जीव कुछ ऐसा

प्रथम चरण में
लंबा और अजीब
द्वितिय चरण
लिए अंडकोश
आता बाहर
तृतीय चरण
तितली का रुप
जीव कुछ ऐसा

पकड़ा वह जीव
लड़का जिसका नाम है अक्शत...!!
जीव कुछ ऐसा ..

प्रस्तुत कविता मेरी डायरी में पूर्व प्रकाशित है... कविता कॉलेज में एक छोटे कीट को पकड़ और उसका पूर्ण परीक्षण कर के लिखी गई!!



-दिनेश नयाल ( जिन्न )
सर्वाधिक सुरक्षित एवं प्रकाशित
७ दिसंबर २०१३
7 dec 2013

Tuesday 26 November 2013

कॉलेज की लड़ाई

हाँ जिन्न देखी एक लड़ाई 
वो लोगों का झुंड बनाना 
लड़कियों का आपस में टकराना!... 
गाली गलोज , वो झगड़े फसाद 
खुशियोँ का पल चूर हो जाना,  

हे! दुनिया के लोगों 
कवि ह्रदय को जानोँ 
कवि ह्रदय पहचानोँ 
शायद ये वैर-भाव मिट जावे।
 
हाय! वो हंगामा वो शोर सराबा 
इंटो का इंटो से टकराना 
लड़कियों के लिए लड़कों का 
आपस में भिड़ जाना!  

पीड़ा एक कवि ह्रदय की 
पीड़ा तुम भी समझो मित्रों
कितना दर्द कितनी चोट 
पहुँची इस कवि ह्रदय को ..

मुझको जानोँ मुझे पहचानोँ 
पीड़ा मेरी पता चलेगी फिर तुमको.....!!  


......जिन्न (अंतरात्मा ) 

मेरी यह कविता मेरी डायरी में पूर्व प्रकाशित है... 
कविता के माध्यम से मैंने युवा वर्ग को लड़ाई झगड़े में ना पड़ने और विवादोँ से दूर रहने की ओर प्रेरित किया है....

Sunday 24 November 2013

मैं कोन हूँ

हाँ मुझे पसंद है लोगों से बातें करना!! 
हाँ मैं बहुत बातुनी हूँ, 
हाँ मुझमें अकड़ है, 
हाँ मैं खुद को बहुत बड़ा dancer समझता हूँ,

हाँ मैं खुद को एक्टर समझता हूँ, 
हाँ मैं खुद को rapper भी समझता हूँ ,
हाँ मैं खुद को बदमास समझता हूँ, 
हाँ मैं खुद को कवि समझता हूँ ,
हाँ मैं खुद को लेखक समझता हूँ, 
लेकिन मैं खुद को वोई समझता हूँ, 
जो लोग मुझे समझते हैं,, 
आप चाहें मुझे उठा सकते हैं,  
आप चाहें मुझे गीरा सकते हैं , 
कहाँ गलत हूँ आप मुझे बताएँ..!

Tuesday 9 April 2013

जब मैं छोटा था

जब मैं छोटा था,
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती थी..

मुझे याद है मेरे घर से
"स्कूल" तक का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
चाट के ठेले,

जलेबी की दुकान,
बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां "मोबाइल शॉप",
"विडियो पार्लर" हैं,
फिर भी सब सूना है..

शायद अब दुनिया सिमट
रही है...

जब छोटा मैंथा,  

शायद शामें बहुत
लम्बी हुआ करती थीं..
मैं हाथ में पतंग की डोर
पकड़े,


घंटों उड़ा करता था,
वो लम्बी "साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल, वो हर
शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन
ढलता है

और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
जब मैं छोटा था,
शायद दोस्ती बहुत
गहरी हुआ करती थी,

दिन भर वो हुजूम बनाकर
खेलना,
वो दोस्तों के घर
का खाना, वो साथ
रोना...

अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है,
जब भी "traffic signal" पे
मिलते हैं "Hi" हो जाती है,
और अपने अपने रास्ते चल
देते हैं,

होली, दीवाली,
जन्मदिन,
नए साल पर बस SMS आ
जाते हैं, शायद अब रिश्ते
बदल रहें हैं..

छुपन छुपाई, लंगडी टांग,
जब मैं छोटा था,
टिप्पी टीपी टाप.
तब खेल भी अजीब हुआ करते
थे,

पोषम पा, कट केक,
अब internet,
से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल
रही है.

जिंदगी का सबसे बड़ा सच
यही है..
जो अक्सर कबरिस्तान के
बाहर
बोर्ड पर
लिखा होता है...

"मंजिल तो यही थी,
बस जिंदगी गुज़र
गयी मेरी
यहाँ आते आते"
.
.ज़िंदगी का लम्हा बहुत
छोटा सा है...

कल की कोई बुनियाद
नहीं है
और आने वाला कल सिर्फ
सपने में ही है..
अब बच गए इस पल में..
तमन्नाओं से भरी इस
जिंदगी में
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,

मेरे दोस्त,
और इस
ज़िंदगी को जियो...
खूब जियो मेरे दोस्त... :)


Friday 22 March 2013

गरीबी







दर्द क्या है 


तुम क्या जानो

भूख क्या है तुम क्या जानो

बरसात में कोई आसरा नहीं

ठंड में कोई घर नहीं

धूप में ना छाता कोई

ए.सी- कुलर में रहने वालों

छत की किमत तुम क्या जानों

बच्चों कि सीसकियाँ

आँखों में उम्मीदेँ

कुड़े के उस ढेर से

हर वक्त कुछ पाने की आशा

कुछ ना मिलने पर खोने का दर्द

तुम क्या जानो!!

महलोँ में रहने वालों

हाल हमारी गरीबी का

तुम क्या जानोँ...


(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित


Tuesday 19 March 2013

तनहा

सोचता हूँ
हाईयोँ के इस सफर में
क्या तनहा में अकेला हूँ,
है कोई ओर भी जो
तनहा है मेरे बिन,
साथी तू अकेला
न समझ सफर में 
अपने आप को,
कहते हैँ मुश्किल से मिलते हैं
दो दिल जिंदगी के इस सफर में...


(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )


उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित