Sunday 2 March 2014

स्कूल के दिन: जिंदगी के बेहतरीन यादगार पल।



यदि कोई मुझसे पूछता है कि जिंदगी के सबसे बेहतरीन और घटिया क्षण आपके कौन से हैं?
तो मेरा जवाब वापस वहीं पे आ टिकता है।
हाँ बेहतरीन पलोँ की यदि बात करूँ तो स्कूल में बिताए वो सारे क्षण जो मुझे याद हैं बेहतरीन थे।
और
घटिया-बुरे दिनों की शुरुआत तब हुई जब मैं इतना बड़ा हो गया कि स्कूल छोड़ना पड़ा, अब में स्कूल नहीं जा सकता था।
और ज्यादा बुरा दिन इस स्थानांतरण ने किया जब दिल्ली छोड़ कानपुर आना पड़ा...
,,
मुझे ये भी पता है ज्यादातर बच्चे स्कूल से नफरत करते हैं और रविवार की साप्ताहिक छुट्टी बिता कर जब सोमवार स्कूल जाने का समय आता है तो उस से मन-मुटाव करने लगते हैं, पर में एक साधारण सा था।
मैं छुट्टियों से नफरत करता था, और स्कूल खुलने का इंतजार नहीं कर पाता था। घर में बोरियत महसूस करता था।
स्कूल तो जैसे मेरा पहला घर था एवं दोस्त और टिचर्स मेरे परिवार के सदस्य!!!
,,
,,
यदि बात करूँ स्कूल छोड़ने की तो तीन साल हो चुके हैं...स्कूल छोड़े और इस प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया में उतरे हुए...
जहाँ हर कोई रफ्तार से चलता है, पता नहीं क्योँ मैं अपने आप को कमजोर महसूस करता हूँ, हद से ज्यादा दबाव ये मेरी जिंदगी में आया अचानक परिवर्तन था जिसने मुझे असुविधापूर्ण बना दिया।
हालाँकि मुझे अभी भी याद है वो दिन जब हमारे स्कूल टिचर्स हमेंशा हमें सुविधापूर्ण और दबाव सहने की शिक्षा दिया करते थे।
मैं अचानक ऐसी जगह धकेल दिया गया जहाँ प्रोफेसर को हमारे भविष्य और सुविधा से कोई लेन देन नहीं और हमारे जिंदगी से जुड़ी बहुत कम बातें होती हैं यहाँ।
जैसे बोल रहे हों ' अपने आप करो जो करना है, नहीं तो रहने दो '
नियम और कानूनों का दायरा खत्म हो चुका है अब।
बचे हम वक्त के साथ जाने कब खत्म हो जाएँ लेकिन हाँ जिंदगी अभी भी वैसी ही चल रही है ' जिन्न ' कुछ नहीं बदला।,,,
बदले सिर्फ तो वो जगह, वो दोस्त , वो टिचर्स और....

स्कूल ( अब विश्वविद्यालय )..

दिनेश नयाल( जिन्न )
सर्वाधिक सुरक्षित एवं प्रकाशित

2 march, 2014