Tuesday 27 December 2011

मेरी कविता प्यारी मुझको (Meri Kavita Pyari Mujhko)

मेरी कविता प्यारी मुझको,औरों को ये सरदर्द है,समझ के भी आदत ना छूटे,जाने कैसा ये मर्ज है…….देखो, फिर भी अर्ज है………मेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है,
कभी जो लब पर ये आ जाती,और कुछ पंक्ति मै लिख पाता,फिर जो कोई पास हो मेरे,पकड़ सुनाने उसको लगता,मचले मेरा दिल तब ऐसे,जैसे मेरा यही फर्ज है,मेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है.
जाने कविता या हो विन्मुख,इससे न कुछ फर्क है पड़तादोस्त भी भागें दूर हैं मुझसेजब चढ़ता ये जोश कवि काबात यही बीवी बच्चों की,इससे न कुछ उन्हें अर्थ हैमेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है,
माँ जैसे अपने बच्चोसे प्यार है करती,जैसे भी हों.मेरा प्यार भी ऐसा ही हैमेरी कविता जैसी भी हो.पर लोगों को इसका क्या हैउनको तो ये समय व्यर्थ है.सुना रहा पर मैं कवितायें,जैसे मैंने लिया कर्ज हैमेरी कविता प्यारी मुझको, औरों को ये सरदर्द है,समझ के भी आदत ना छूटे, जाने कैसा ये मर्ज है…….

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