Friday, 22 March 2013

गरीबी







दर्द क्या है 


तुम क्या जानो

भूख क्या है तुम क्या जानो

बरसात में कोई आसरा नहीं

ठंड में कोई घर नहीं

धूप में ना छाता कोई

ए.सी- कुलर में रहने वालों

छत की किमत तुम क्या जानों

बच्चों कि सीसकियाँ

आँखों में उम्मीदेँ

कुड़े के उस ढेर से

हर वक्त कुछ पाने की आशा

कुछ ना मिलने पर खोने का दर्द

तुम क्या जानो!!

महलोँ में रहने वालों

हाल हमारी गरीबी का

तुम क्या जानोँ...


(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित


Tuesday, 19 March 2013

तनहा

सोचता हूँ
हाईयोँ के इस सफर में
क्या तनहा में अकेला हूँ,
है कोई ओर भी जो
तनहा है मेरे बिन,
साथी तू अकेला
न समझ सफर में 
अपने आप को,
कहते हैँ मुश्किल से मिलते हैं
दो दिल जिंदगी के इस सफर में...


(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )


उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित