साहित्यकार बनने से पहले साहित्य पढ़ो और सीखो..
मैं अच्छा लेखक तो नहीं अच्छा पाठक अवश्य हूँ,
शब्दों का जाल बुनना और पाठकों को आकर्शित करना अच्छा लगता है।
Tuesday 19 March 2013
तनहा
सोचता हूँ तनहाईयोँ के इस सफर में क्या तनहा में अकेला हूँ, है कोई ओर भी जो तनहा है मेरे बिन, साथी तू अकेला न समझ सफर में अपने आप को, कहते हैँ मुश्किल से मिलते हैं दो दिल जिंदगी के इस सफर में... (रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )
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