Saturday, 5 December 2015

फेसबुक का कीड़ा

खोल के देखी आज अपनी ' दिवार '
" किड़े " लग चुके थे....
ये सजा थी कि
हकिकत बयाँ करती
एक " तस्वीर "
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बहुत दिनों बाद आज 
लिख रहा हु 
क्या करे कलम से 
लिखने वाले हाथ अब
टाईपिंग की गन्द पहचानते है...
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रचनाकार: दिनेश नयाल
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
उत्तराखंड पौडी गढवाल

Tuesday, 27 October 2015

सूने पड़े गाँव

सूने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर..

दो पल तेरी याद

एक पल उसका कहेर..


सुना है अब कौई आता नही..

लौट आने को जी चाहता नहीं..

सूने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर..

...

सुना था गाँव में शादी है

मन कहीं रुक पाता नहीं

घुगती सी डाल में बैठा

दिन्न अभी शरमाता नहीं..


कहीं पत्थर

कहीं बाँझ है पुँगडी

मन कभी भरमाता नहीं

रोना मुझे आता नहीं..


सुने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर

....
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रचनाकार: दिनेश नयाल
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
उत्तराखंड पौडी गढवाल




व्यथा जो अंतरमन को झिंझोड़ कर रख दे...

जिससे गाँव की याद सताये हाँ कुछ कारण वश गाँव नहीं पहुंच पा रहा हूँ..

Friday, 16 October 2015

औरत का स्वरुप

सुना जब किसी से
औरत का रुप नहीं..
..
थोड़ा लड़खड़ाया
और घबराया..
...
देव प्रचंड ले अवतार
अर्धनारिश्वर जगमगाया..
....
हुई कुँठा देख उस व्यक्ति को
मैं थोड़ा झुँझलाया...
...
औरत का रुप स्वरुप
ना पहचाने जो..
वो कैसे आज तक
जगममाया..
...
है आग की तपिश
प्रचंड बाला..
....
क्या है तेरे मन में
जो ना भरपाया..
...
भस्म हो जाएगा
चंडी है वो
मूर्ख अभी ना समझ पाया...
...
सुना नहीं
जगमग ज्योत जलाते रहो
नाम उसी का गाते रहो..
...
इंसान है तू
इंसानियत ना समझ पाया..
...
जिन्न_दिनेश..
सर्व अधिकार सुरक्षित एवं पूर्व प्रकाशित..


यूवा शक्ति को प्रेरित करने हेतू मेरी कोशिश भर..

Wednesday, 14 October 2015

देखा एक लाल रंग

देखा एक लाल रंग
दहकता सा किराहता सा..

जैसे ओढे अप्रतिम किरणे..
समाय इस लाल रंग में..
करहाता सा ...

दुनिया को अपने रंग में समाने को..
रुक ना जाए ये जहाँ..
इस लाल रंग की काया में..
बोल रहा है
पा लिया ये जहाँ..
मेरे इस लाल रंग ने..

अब ना दिखती वो काया
जो धरती में समाया...

लिया रुप फिर लकड़ी का..
मुझे इस जहाँ में पाया...

'जिन्न' देख लिया वो लाल रंग
जी फिर भी ना भर पाया..

कैसे जीते हैं लोग

कैसे जीते हैं लोग
ये दोहरा जीवन..
...
हँसी आती है
कुछ पल देख
जीवन की सच्चाई..
...
कुछ होता है पास
कुछ होता दूर..
...
कुछ लोगों की मानसिकता....

स्वचित्रिक..
Iţs mє..