Tuesday 27 October 2015

सूने पड़े गाँव

सूने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर..

दो पल तेरी याद

एक पल उसका कहेर..


सुना है अब कौई आता नही..

लौट आने को जी चाहता नहीं..

सूने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर..

...

सुना था गाँव में शादी है

मन कहीं रुक पाता नहीं

घुगती सी डाल में बैठा

दिन्न अभी शरमाता नहीं..


कहीं पत्थर

कहीं बाँझ है पुँगडी

मन कभी भरमाता नहीं

रोना मुझे आता नहीं..


सुने पड़े गाँव

बंद पड़े शहर

....
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रचनाकार: दिनेश नयाल
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
उत्तराखंड पौडी गढवाल




व्यथा जो अंतरमन को झिंझोड़ कर रख दे...

जिससे गाँव की याद सताये हाँ कुछ कारण वश गाँव नहीं पहुंच पा रहा हूँ..

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