पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाडों को देखता हूँ..
अप्रतिम सौदर्य ओढें
इस नीली धरा में ,,
वो सफेद नीली वर्दी
आँखो में निश्चल सपना लिए
हँसते खेलते बस्ते ,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ,
,
वो घुमावदार और तीखे रास्ते,
वो नदियों का बहना
और एक बड़ा समंदर बनाना
उर्जा का स्त्रोत है जहाँ,
,
पहाडों के सफर में हूँ ,
पहाड़ों को देखता हूँ
,
वो बाँज देवदार वृक्ष
की घनी छाँव भरी ठंडक,
वो तीखे सख्त चट्टानो की गर्मी,
नरम और सख्त
मौसम का ऐहसास,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ
,
वह खुली दुकानें
जो हमारे इंतजार कर रही थीं,
चुल्हे से उतरती रोटी का स्वाद
हमने चखा था जो
निसंदेह स्वादिष्ट थी,
वो चाय जिसमें मीठा कम
अपनापन ज्यादा था
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ,
,
फिर वह पानी देखा
जो पहाडों में ठहरा हुआ था
लेकिन फिर उस जवानी को
देख आँख भर आई
जो ढलानों में बह गई,,
,
पहाड़ों के सफर में हूँ,
पहाड़ों को देखता हूँ..
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
रचनाकार: ©दिनेश सिंह नयाल
यमकेश्वर, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)
30 अप्रेल, 2021
No comments:
Post a Comment