Thursday 23 February 2012

गोल्ड फ्लेग से मोमेन्ट्स तक का सफर!! (आत्मकथा)






गोल्ड फ्लेग सिगरेट लेकर रेत के टीले के पीछे छुपते हुए दो-चार साईकिल से जाते थे…… 


किसी पहाड़ी में छिपकर रोज वो सिगरेट जो सफेद-भूरे रंग की होती थी…


बेस्वाद सी लगती थी … 


पर दो-चार कश लेने के बाद फ़िर कड़वी लगने लगती थी… 


क्यों वो बाद में पता चला .. 


सिगरेट तो पीनी आती नहीं थी ….. 


पहले कश में ही सिगरेट का फ़िल्टर अपनी जीभ से गीला कर देते थे और फ़िर वो कसैलापन मुँह में चढ़ता ही जाता । 






सिगरेट के जलते हुए सिरे को देखते हुए उस सिगरेट को खत्म होते देखते थे… 


सिगरेट का धुआँ और उसकी तपन शुरु में असहनीय होती थी… 


बाद में पता चला कि जब सिगरेट जलती है और जो आग उस सिगरेट को ऐश में बदलती है उसका तापमान १०० डिग्री होता है… 






पहली बार हमारे भौतिकी विज्ञान के प्रोफ़ेसर ने बताया था कि इसे ऐश कहते हैं… 


हम तब तक जिंदगी के मजे लेने को ही ऐश समझते थे, 


पर उस दिन हमें असलई ऐश समझ आई कि सिगरेट की राख जो कि जिंदगी को भी राख बना देती है, उसे ऐश कहते हैं… 






पता था कि ऐश करना अच्छी बात नहीं है… 


परंतु बहुत देर बाद समझ में आई ये बात… 


एक मित्र था अनुराग कहता था कि किसी भी नये शहर में जाओ तो सिगरेट और दारु से दांत काटे मित्र बड़ी ही आसानी से बन जाते हैं, 


किसी भी पानवाड़ी की गुमटी को अपना अडडा बना लो और फ़िर देखो …. 






जब शहर बदला तो यही फ़ार्मुला अपनाया 


और रेगुलर/गोल्ड फ्लेग छोड़ मोमेंट्स के साथ बहुत से दोस्त बनाये… 


अब लगता है वो ऐश खत्म होने से अच्छी दोस्ती खत्म हो गई, 


लोग आपस में बात करने के लिये समय नहीं निकाल पाते… 


कम से कम ऐश करते समय आपस में पाँच मिनिट बतिया तो लेते हैं… 


पर क्या करे हम ऐश करना छोड़ चुके हैं…. 


पर वो गोल्ड फ्लेग का कसैलापन अभी भी याद है…














(आत्मकथा : दिनेश सिंह नयाल ) 


पट्टी : तल्ला उदयपुर


ब्लोक : यमकेश्वर


वि.आ : भ्रगूखाल उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल 


सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित



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