स्कूल के दिनोँ में काटे गये छोटे-मोटे पल
जब याद आते हैं तो दिल से
मेरी यह रचना नीकलती है।
यख एक कविता च ऊँ दगड़्योँ कुन
जु स्कूला विदई का आखरी दिन म्यार दगड़ी छै .....
बाट दिखीँ छै ये दिना की कुजणी कब बटी की,
अगण्या का सुपिन्या सजयां छै कुजणी कब बटी की,
भोत कुल्बुल्याणा रयाओ यक बटी जाणा कुन ,
जिँदगी कु अगल पड़ाव पाणा कुन ,
पर कुजणी किले…
दिल मा आज हाईगी कुछ आंद चा,
समय तै रुकणा कु ज्यु चांदु चा,
ज्योँ बात पन रुवै आंद छै कभी!
आज वों पन हँसी च आणी,
कुजणी किले आज वों दिना की याद छे आंदी,
बुल्ना रयांद छै …धो मुश्किल कोरी एक साल सह ग्याओ,
पर आज किले लगणु चा कुछ पिछण्या रै ग्याओ,
ना बिसरन वाली खुद रै ग्येन,
खुद जु अब जीण का सहारा बणी ग्येन,
म्यार टंगुड़ अब कु खिंचलु अर
म्यार खुपड़ा खाणा कुन कु म्यार पिछन्या अटकलु,
जख रुपयोँ कु कुई हिसाब-किताब नी वख द्वी रुपया बान कु लड़लु ,
कु रात भर दगड़ी जागी कन म्यार दगड़ी पढ़लु ,
कु म्यार कोपी-किताब में से पुछ्यां बिना ली जाल,
कु म्यार नयुँ-नयुँ नो बणाल,
मीन अब सुद्दी-मुद्दी कै दगड़ लण,
बिना विचार सुद्दी कै दगड़ गप्प लगाण,
कु फ़ेल ह्वाण पर मीथे पुल्याल,
कु गलती से नं॰ लाण पर गाली सुणाल ,
दुकनी मां चाय-पकोड़ कै दगड़ी खोलु,
वु भलु दिनां कै दगड़ी ज्युलु,
यन दगड़्या कख मिलला
जु भ्याल मां तुमतै लमडे दयाला,
पर तुमथै बचाण कुन अफीक भी लमडी जाला.
म्यार गीत सुणी कंदड़ पुटुक उँगील कु द्यालु ,
कभी मीथे छोरी दगडी बात कोरीँ देख फंटी कु बणालु,
कु ब्वालल माचद त्यार मजाक मां होँस नी आई ,
कु पिछन्या बटी धारी लगे की बुललु..अगण्या देख रे भाई,
पिक्चर मी केक दगड़ी दिखलु,
केक दगडी बैठीक गुरजी तै परेशान करलु,
बिना डर्याँ सच बुल्ना की हिम्मत कु करलु,
अचानक कैता भी देखि सुद्दी हँसुंण,
कुजणी फिर कब ह्वाल,
दगड़्योँ बान गुरजी दगड़ फिर कब लड़ला,
क्या हम ई दुबर कर पोला,
सुबेर-सुबेर बिज्जी कन तयार कु ह्वाल,
छज्जा मनन कुदणा की शर्त कु लगाल,
कु म्यार काबिलियत पर मीथे भरोसो दिलाल
अर ज्यादा बथोँ मा उडण पर भीम लाल,
म्यार खुशी देखी सच मां खुश कु ह्वाल,
म्यार खैरी देखी में से ज्यादा दुखी कु ह्वाल…
बोला दगड़्योँ ई दुबर कब ह्वाल....!
आशा करदु की हम दुबर फिर मिलला...!!
(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )
पट्टी/तल्ला : उदयपुर
ब्लोक : यमकेश्वर
वि.आ : भ्रगूखाल
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
जब याद आते हैं तो दिल से
मेरी यह रचना नीकलती है।
यख एक कविता च ऊँ दगड़्योँ कुन
जु स्कूला विदई का आखरी दिन म्यार दगड़ी छै .....
बाट दिखीँ छै ये दिना की कुजणी कब बटी की,
अगण्या का सुपिन्या सजयां छै कुजणी कब बटी की,
भोत कुल्बुल्याणा रयाओ यक बटी जाणा कुन ,
जिँदगी कु अगल पड़ाव पाणा कुन ,
पर कुजणी किले…
दिल मा आज हाईगी कुछ आंद चा,
समय तै रुकणा कु ज्यु चांदु चा,
ज्योँ बात पन रुवै आंद छै कभी!
आज वों पन हँसी च आणी,
कुजणी किले आज वों दिना की याद छे आंदी,
बुल्ना रयांद छै …धो मुश्किल कोरी एक साल सह ग्याओ,
पर आज किले लगणु चा कुछ पिछण्या रै ग्याओ,
ना बिसरन वाली खुद रै ग्येन,
खुद जु अब जीण का सहारा बणी ग्येन,
म्यार टंगुड़ अब कु खिंचलु अर
म्यार खुपड़ा खाणा कुन कु म्यार पिछन्या अटकलु,
जख रुपयोँ कु कुई हिसाब-किताब नी वख द्वी रुपया बान कु लड़लु ,
कु रात भर दगड़ी जागी कन म्यार दगड़ी पढ़लु ,
कु म्यार कोपी-किताब में से पुछ्यां बिना ली जाल,
कु म्यार नयुँ-नयुँ नो बणाल,
मीन अब सुद्दी-मुद्दी कै दगड़ लण,
बिना विचार सुद्दी कै दगड़ गप्प लगाण,
कु फ़ेल ह्वाण पर मीथे पुल्याल,
कु गलती से नं॰ लाण पर गाली सुणाल ,
दुकनी मां चाय-पकोड़ कै दगड़ी खोलु,
वु भलु दिनां कै दगड़ी ज्युलु,
यन दगड़्या कख मिलला
जु भ्याल मां तुमतै लमडे दयाला,
पर तुमथै बचाण कुन अफीक भी लमडी जाला.
म्यार गीत सुणी कंदड़ पुटुक उँगील कु द्यालु ,
कभी मीथे छोरी दगडी बात कोरीँ देख फंटी कु बणालु,
कु ब्वालल माचद त्यार मजाक मां होँस नी आई ,
कु पिछन्या बटी धारी लगे की बुललु..अगण्या देख रे भाई,
पिक्चर मी केक दगड़ी दिखलु,
केक दगडी बैठीक गुरजी तै परेशान करलु,
बिना डर्याँ सच बुल्ना की हिम्मत कु करलु,
अचानक कैता भी देखि सुद्दी हँसुंण,
कुजणी फिर कब ह्वाल,
दगड़्योँ बान गुरजी दगड़ फिर कब लड़ला,
क्या हम ई दुबर कर पोला,
सुबेर-सुबेर बिज्जी कन तयार कु ह्वाल,
छज्जा मनन कुदणा की शर्त कु लगाल,
कु म्यार काबिलियत पर मीथे भरोसो दिलाल
अर ज्यादा बथोँ मा उडण पर भीम लाल,
म्यार खुशी देखी सच मां खुश कु ह्वाल,
म्यार खैरी देखी में से ज्यादा दुखी कु ह्वाल…
बोला दगड़्योँ ई दुबर कब ह्वाल....!
आशा करदु की हम दुबर फिर मिलला...!!
(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )
पट्टी/तल्ला : उदयपुर
ब्लोक : यमकेश्वर
वि.आ : भ्रगूखाल
उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
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