Wednesday 30 May 2012

हुक्का

म्यार पहाड़ कु हुक्का च 
दान मनख्योँ की जान, 
गुड़गुड़गुड़गुड़गुड़ 
कि ये मां बस्युं च 
बुढ़-बुढ़्योँ कु प्राण, 
चा हो कतगा थकावट
या खुट-हत करना ह्वा परेशान 
गुड़गुड़गुड़गुड़ 
एक सुटका मारी 
वापस ऐ जदीन जान-प्राण, 
है ब्वारी यखुम आदी 
चुल्ल मनन अंगार लादी 
बल श्याम ह्वेगे तलब बहुत लगी रे 
तंबखु डाली की हुक्का जला दी 
गुड़गुड़गुड़गुड़ 
म्यार पहाड़ कु हुक्का च 
दान मनख्योँ की जान, 
गुड़गुड़गुड़गुड़गुड़ 
कि ये मां बस्युं च 
बुढ़-बुढ़्योँ कु प्राण, 
अब त घाम अछेँ ग्ये 
रुमुक पड़ी ग्ये 
गौं का बुढ़-बुढ़्योँ कु 
पंगत लगी ग्ये 
कन खट्टी-मीट्ठी छुईँ चन लगोँदा 
अर एक तरफ बटी 
गुड़गुड़गुड़गुड़ 
हुक्का छन सुटकोँणा 
ल्या ब्वाड़ा तुम भी प्या 
ल्या बोड़ी तुम बी ल्या 
ब्वाड़ा तै खांसी-खंकार च आणा 
गुडगुडगुडगुड हुक्का च प्याणा 
म्यार पहाड़ कु हुक्का च 
दान मनख्योँ की जान, 
गुड़गुड़गुड़गुड़गुड़ 
कि ये मां बस्युं च 
बुढ़-बुढ़्योँ कु प्राण..... 


(रचनाकार : दिनेश सिंह नयाल )

पट्टी/तल्ला : उदयपुर
ब्लोक : यमकेश्वर
वि.आ : भ्रगूखाल 


उत्तराखंड पौड़ी गढ़वाल

सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित

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